का दुख ल बतावंव बहिनी,
मेहां बनगेंव गेरवा ओ।
जेने घुंटा मं बांधिस मोला,
उही मं बंधागेंव नेरवा ओ।
पढ़-लिख का करबे किके,
स्कूल मोला नइ भेजिस ओ।
टुरी अच चुल्हा फुंकबे किके,
अंतस ल मोर छेदिस ओ।
किसानी मं मोला रगड़दिस,
बुता मं सुखागे तेरवा ओ।
जेने खुंटा मं बांधिस मोला,
उही मं बंधागेंव नेरवा ओ।
चउदा बछर मं होगे बिहाव,
सास-ससुर के दुख पायेंव।
नइ जानेंव मनखे के मया,
मनखे के दुख ल भोगेंव।
संझा-बिहनिया पीके मारथे,
नोहय मनखे मोर मेड़वा ओ।
जेने खुंटा मं बांधिस मोला,
उही मं बंधागेंव नेरवा ओ।
सोला बछर मं होगेंव राड़ी,
दोखही मेहां कहायेंव ओ।
ससुरार ले निकाल दिस मोला,
मइके मं ठउर नइ पायेंव ओ।
जगा-जगा मं मोरेच निंदा,
जिनगी होगे करूवा ओ।
जेने घुंटा मं बांधिस मोला,
उही मं बंधागेव नेरवा ओ।
जुठा-टठिया मांज के बहिनी,
दू जुअर रोटी पायेंव ओ।
मालिक के नियत खोटहा होगे,
इज्जत मेहां गवायेंव ओ।
अतेक सुघ्घर तन ह मोर,
बनगे बहिनी घुरवा ओ।
पहाड़ असन जिनगी ल दीदी,
कइसे पहाहूं मय नेरवा ओ।
कु. सदानंदनी वर्मा
रिंगनी{सिमगा}
मो.न.-7898808253
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To deep thoughts miss. I am learning chhattisgarhi and your poem helped…